शंखधर दूबे, उपनिदेशक संसद सचिवालय
आज विश्व कविता दिवस है। परसाई जी की सुनी जाय, हालांकि सुनता कौन है, सब मनोरंजन के लिए पढ़ते हैं, तो 'कमजोरों का ही दिवस होता है। फरियादी दिवस होता है थानेदार दिवस नहीं'। इतिहास गवाह है कि साहित्य में विशेषकर हिंदी साहित्य में कविता और व्यंग्य बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं। इसके बुरे दौर का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मैं खुद पिछले कई सालों से कविता और व्यंग्य पर हाथ साफ कर रहा हूँ। फिलहाल कवि और व्यंग्यकार का डेडली कॉम्बो सुपरहिट है। "लेखक वरिष्ठ कवि और चर्चित व्यंग्यकार हैं।"
गौरतलब है कि चर्चित होना एक मुहावरा है इसका वास्तविक मतलब गुमनाम ही होता है। यह अर्थों के गड्ड-मड्ड होने का दौर है चर्चित अचर्चित सब खो गए हैं धुएँ के सघन बादल में। वैसे भी चर्चित होने के लिए खर्चित होने की हैसियत भी होनी चाहिए। एक मर्तबा लखनऊ में एक विचार गोष्ठी में, जिसका विचार से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं था, प्रस्तोता ने मुझे ही बहुचर्चित बता डाला।
बात यह थी उपस्थित विरल श्रोताओं में कोई मुझे जानता तक नहीं था, यह मेरे लिए शर्मनाक स्थिति थी। लेकिन प्रस्तोता इतनी सुन्दर थी कि मैंने तत्क्षण न होने के बावजूद खुद को चर्चित होना स्वीकार कर लिया। सपना तब टूटा ज़ब वह कद्दावर सुंदरी लखनऊ के एक चर्चित बुक स्टोर में टकरा गयी। मैंने उसे हेलो कहा, लेकिन उसके इलीट चेहरे पर अंग्रेजी में जो भाव आया उसका उसका सरल हिंदी में अनुवाद यह था, अब तुम कौन बे? मेरी हिम्मत न हुई कह सकूं कि चर्चित कवि हूँ।
फेसबुक की दस वाल का सर्वे कीजिए उसमे 12 वाल पर कविताएं मिलेंगी। सब कविता ढूंढ़ रहे हैं। और कविता? वह नन्ही सी गौरैया कवियों की सघन पदचाप में जान बचाने के लिए बदहवास सी इधर-उधर भाग रही है। कवि कविता में जनतंत्र बनाता है जीवन में नहीं। कलात्मक अनुभव का सृजन करके कवि बरी हो लेता है, कविता एक मंदिर है जिसका देवता कवि है। उसे आपकी श्रद्धा और नैवेद्य नहीं चाहिए। उसे चाहिए ईनाम इकराम, अकादमी, ज्ञानपीठ। कविता बगल के झुरमुट में रेंग गयी है। बेसुध सो गयी है। मेरा कवि लिख रहा है-
जलती धरती पर वारिश की
जो पहली बूंद गिरी थी..
वह कविता थी।
ज़ब मनुष्य के पास कुछ नहीं था
कविता थी।
ज़ब कुछ नहीं होगा तो कविता होगी।
कविता हत्या का नैतिक प्रतिरोध है।
कविता झूठ की अदालत में सच्चाई की गवाही है।
कविता निहत्थे व्यक्ति के हाथ की लाठी थी।
हर तन्हा व्यक्ति की साथी है।
कविता पिस्तौल की गोली है
कविता महबूब की बोली है
कविता सलहज की ठिठोली है।
कविता बचपन की फ्रॉक वाली लड़की के साथ आँख मिचौली है..
कविता डायनासोर नहीं है। कविता जीयेगी कविता रहेगी।
खुद सहित तमाम कवियों से क्षमा याचना सहित निवेदित..


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